एक सामंजस्य तो जरूर देखने में आता है कि श्री बद्रीनाथधाम के पट खुलने पर वहा आरती दीपक बती से चालू होती है एवं प्रायः उसी काल मे यहां आरती चन्दन-तुलसी से ! ओर जब वहा पट्ट मंगल हो जाते है तब यहाँ दीपक बती की आरती प्राम्भ हो जाती है इस मंदिर की यह परम्परा है|
आरती जरूर दीपक-बती की बारहो मास होती हैं, चाहे बद्रीनाथधाम हो या लष्मीनाथधाम में |
शायद यही आभास पुज्य स्वा मी को हुआ हो अतः उक्त उदगार उनके श्री मुख से निकले हो| भगतो के भगवान कब अवतरित होते है यह तो जन जन व्याप्त उन चमत्कारी घटनाओं से साश्रय होने पर ही होता है |
परन्तु कुछ बाते पीढ़ी दर स्मरणीय बनी रहती है ओर वही स्मरणीय श्रंखला वर्तमान गाथा का आधार होता हैं|
पुराने मन्दिर के इतिहास के अनुसार यह प्रतिमा संवत 1552 में हैदराबाद के पठान मोहम्मद अली को भूमि के नीचे से मिली एवं 59 वर्ष तक उन्ही के पास रही !
सम्वत 1588 में भगत के गुरुजी भोजक के द्वारा इस पतिमा को वहां से लाकर फतेहपुर स्थित सब्जी मंडी के पीछे श्री सीतारामजी के मंदिर में विराजमान किया गया|
स्वत 1621 विशाख शुक्ला 15 दिन भगवान की उक्त पतिमा को वर्तमान में स्थित एक छोटा मन्दिर निर्माण करवाकर विराजमान किया गया | स्वत 1806 में चूरू के श्री नाहरमलजी लोहिया परिवार द्वारा आषाढं शुक्ला 15 के दिन यह वर्तमान मन्दिर बालकृष्णजी चौधरी की देख-रेख में नगर के पन्चो द्वारा निमित्त हुआ | मन्दिर के लिये जमीन अग्रवाल महाजन झुर्रियो द्वारा प्रदान की गई |
चमत्कार होते गये , ध्यान एवं दर्शन से मनोकामना पूरी होती गई , जन मानस में श्रद्धा बढ़ती गई उसी विस्वास का परिणाम है आज का यह भव्य मंदिर |
उस समय सचालन व्यवस्था को सुचारु रूप देने के लिये पच महाजनो चौधरियो ने भोजक परिवार के साथ दो सहायक पंडा जाती के पुजारियों को सेवा के लिए रखा |
स्वत 2032 में देवकीनन्दन खेड़वाल के प्रयत्नों से स्वपथम रजिस्टर्ड ट्रस्ट बोर्ड का गठन हुआ | ट्रस्ट के प्रथम सभापति श्री हनुमान प्रसाद नेवटिया , उसके बाद श्री हनुमान प्रसाद धानुक ने कार्य भार सम्हाला | उसके बाद श्री श्यामसुंदर धानुका व वर्तमान में श्री मदनमोहनजी धानुका सभापति पद पर है | ट्रस्ट बोर्ड के अधीनस्थ स्वत 2044 आस्विनी शुक्ला 10 के दिन एक मंदिर प्रबन्ध समिति का गठन किया गया | प्रबंधको ने मंदिर व्यवस्था को विस्तार देते हुये मंदिर का मुख्य प्रागण चोक , कटला , परिक्रमा , शिवालय , जलाशय , सभाग्रह आदि का निर्माण करवाया | श्री लष्मीनाथ मन्दिर की परम्परा में उत्सव , महोत्सव एवं त्योहार पर विशेष श्रगार व्यवस्था के साथ भागवत कथा का आयोजन स्वत 1964 से आज तक भगतजनो द्वारा किया जाना भगवान एव मन्दिर के प्रति अटूट श्रद्धा को प्रदर्शित करता है |
आज भी नगरवासी एव शहरों की जनता श्रद्धा से अपने इस आराध्य देव को नमन करती है|
चालू समय मे 2020 की महामारी कोरोना में लष्मीनाथ जी कृपा से फतेहपुर में व सूरत गुजरात मे भी उनके दया से गरीबों को खाना वितरित किया जाता है यह सब समभव लष्मीनाथ जी की कृपा से ही है
ओर एक बार जरूर जय श्री लष्मीनाथ जी की बोलियेगा
जय श्री ठाकुर जी की 🙏🙏🙏🙏